Pradeep Saurabh

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About Author

निजी जीवन में खरी-खोटी हर खूबियों से लैस। खड़क, खुर्राट और खरे। मौन में तर्कों का पहाड़ लिये इस शख्स ने कब, कहां और कितना जिया, इसका हिसाब-किताब कभी नहीं रखा। बंधी-बंधाई लीक पर कभी नहीं चले। पेशानी पर कभी कोई लकीर नहीं, भले ही जीवन की नाव भंवर पर अटकी खड़ी हो। कानपुर में जन्मे लेकिन लंबा समय इलाहाबाद में गुजारा। वहीं विश्वविद्यालय से एमए किया। जनआंदोलनों में हिस्सा लिया। कई बार जेल गए। कई नौकरियां करते-छोड़ते दिल्ली पहुंच कर ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के संपादकीय विभाग से जुड़े। कलम से तनिक भी ऊबे तो कैमरे की आंख से बहुत कुछ देखा। कई बड़े शहरों में फोटो प्रदर्शनी लगाई। मूड आया तो चित्रांकन भी किया। पत्रकारिता में पैतीस वर्षों से अधिक समय पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्यों में गुजारा। गुजरात दंगों की रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत हुए। ‘अक्‍कड़- बक्‍कड़’ और ‘तारीफ आपकी’ जैसे चर्चित नियमित स्‍तंभ कई वर्ष लिखे। देश का पहला बच्चों का हिन्दी का अखबार निकाला। ‘नेशनल दुनिया’ के संपादक भी रहे। पंजाब के आतंकवाद और बिहार के बंधुआ मजदूरों पर बनी फिल्मों के लिए शोध। 'बसेरा' टीवी धारावाहिक के मीडिया सलाहकार रहे। कई विश्वविद्यालयों के पत्रकारिता विभाग की विजिटिंग फैकल्टी। कई भाषाओं में उपन्‍यासों का अनुवाद और देश के अनेक विश्‍वविद्यालय में उपन्‍यासों पर शोध प्रबंध हुए हैं। इनके हिस्से 'मुन्नी मोबाइल, 'तीसरी ताली', ‘देश भीतर देश’, ‘और सिर्फ तितली’ उपन्‍यासों के अलावा कविता, बच्चों की कहानियों और संपादित आलोचना की पांच पुस्तकें हैं। कई भाषाओं में उपन्‍यासों का अनुवाद।