Madhav Hada

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आलोचक और शिक्षाविद् माधव हाड़ा की दिलचस्पी का क्षेत्र मुख्यतः मध्यकालीन साहित्य और इतिहास है । उन्होंने आधुनिक साहित्य, मीडिया और संस्कृति पर भी विस्तार से विचार किया है। उनकी चर्चित कृति ‘पचरंग चोल पहर सखी री’ (2015) मध्ययुगीन संत-भक्त कवयित्री मीरांबाई के जीवन और समाज पर एकाग्र है, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद ‘मीरां वर्सेज़ मीरां’ 2020 में प्रकाशित हुआ और पर्याप्त चर्चा में रहा । यह कृति 32वें बिहारी पुरस्कार से सम्मानित भी हुई ।

उन्होंने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में दो वर्षीय अध्येतावृत्ति के अंतर्गत (2019-2021) ‘पदमिनी विषयक देशज ऐतिहासिक कथा-काव्य का विवेचनात्मक अध्ययन’ विषय पर शोध कार्य किया ।

प्राच्यविद्याविद् मुनि जिनविजय के अवदान पर भी उनका शोध कार्य है, जो साहित्य अकादेमी से प्रकाशित है । हाल ही में उन्होंने ‘कालजयी कवि और उनकी कविता’ नामक एक पुस्तक शृंखला का संपादन किया है, जिसमें कबीर, रैदास, मीरां, तुलसीदास, अमीर ख़ुसरो, सूरदास, बुल्लेशाह और गुरु नानक शामिल हैं ।

उनकी अन्य प्रकाशित मौलिक कृतियों में ‘देहरी पर दीपक’ (2021), ‘सीढ़ियाँ चढ़ता मीडिया’ (2012), ‘मीडिया, साहित्य और संस्कृति’ (2006), ‘कविता का पूरा दृश्य’ (1992), ‘तनी हुई रस्सी पर’ (1987) और संपादित कृतियों में ‘एक भव अनेक नाम’ (2021) ‘सौने काट ने लागै’ (2021) ‘मीरां रचना संचयन’ ((2017) ‘कथेतर’ (2016) और ‘लय ’(1996) शामिल हैं । वे मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्ति के बाद वे संप्रति भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की पत्रिका ‘चेतना’ के संपादन से संबद्ध हैं ।