This is an ebook only and can't be downloaded and printed.
Add To BookRack
Title:
Desh Bheetar Desh
Description:
प्रदीप सौरभ का यह तीसरा उपन्यास है। यह देश के भीतर मौजूद देशों की कथा है। यह एकदम सामयिक और सार्थक है। देशों के भीतर धीरे-धीरे उग आने वाले देशों की स्थानीयतावादी अस्मिताएं जब देश के राष्ट्रवादी व्यवहार से प्रतिसंवाद करती हैं तो पैदा होने वाले तनावों, दबावों के बीच मानवानुभव बेहद चिड़चिड़े , कटखने, तिरछे और अनेक बार कंट्रोल से बाहर हो जाते हैं। देश भीतर देश की कथा ऐसे ही असमिया समाज के बीच उगती है। और अपनी उत्कट तीव्रता में हर प्रसंग में बताती चलती है कि भारत के केंद्र और उसके हाशियों के बीच, हाशियों में जीवित समाजों के बीच कितना टेढ़ा और नाराज, हिंसक अंतर्संवाद चलता रहता है। जहां दिल मुश्किल से मिलते हों वहां मानवीय संवाद नहीं होता। बंदूक, संदेह और कानून से जो संवाद होते हैं उनसे दिल नहीं जुड़ते। स्थानीय अकेलापन बढ़ता है। कथा नायक विनय की कहानी इस कथा में एक विकट कहानी है। यह एकदम नया नायक है जो हाशियों से नया संवाद स्थापित करता है। जिसमें प्रेम केंद्रीय भूमिका निभाता है। पूर्वोत्तर हिंदी में विषय कभी नहीं बना। उस समाज की संस्कृति के बीच, उसके इतिहास-भूगोल के बीच इस नए-निराले प्रेम संवाद का अनूठापन हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाला है। प्रदीप हाशियों के घोषित कथाकार हैं। उन्होंने मुन्नी मोबाइल से लेकर तीसरी ताली तक जिन हाशियाकृत अस्मिताओं को जीवंत किया है उसी क्रम में देश भीतर देश पूर्वोत्तर के असम की विषम कथा को कहता है। यह अवश्य ही पढ़ने योग्य कहानी है।- सुधीश पचौरी