कैसे करे भोजन जिससे स्वस्थ हो तन और मन

भोजन चाहे जितना गुणकारी हो, स्वादिष्ट हो या पोषण से भरपूर हो, लेकिन यदि हम समय और ऋतु का ध्यान नही रखते है तो वह भोजन व्यर्थ हो जाता है और फायदे की बजाय बहुत से रोगों का कारण बन जाता है। इसके सम्बन्ध में भोजन करने का समय और कब क्या खाना चाहिये इसके बारे में विस्तार से आयुर्वेद के ग्रंथो में बताया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 17 के श्लोक 8 व 9 में निम्प्रकार कहा है :
आयु: सत्त्ववला रोग्यसुखप्रीतिविवर्धनः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः।। (भ.गी. 17/ 8)
जो भोजन सात्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति करने वाला होता है। ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध, स्वास्थ्यप्रद तथा ह्रदय को भाने वाला होता है।
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णंरूक्षविदाहि
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।। (भ.गी. 17/ 9)
किस ऋतू में कब भोजन लेना चाहिए ?
• हेमन्त-शिशिरादि (जिन ऋतुओं में रात्रि लम्बी होती है) में स्निग्ध और ऊष्ण भोजन प्रातः काल कर लेना चाहिए।
• ग्रीष्म-प्रावृट्टादि (जिनमें दिन लम्बे होते हैं) में द्रव, लघु तथा शीतल भोजन अपरान्ह में करना चाहिए।
• शरद व वसन्तादि (जिनमें रात्रि दिन बराबर) ऋतु में मध्यान्ह में भोजन करना चाहिए|
• अप्राप्तकाल, अतीत काल, अतिमात्रा एवं हीन मात्रा में भोजन वर्जित है|
• भोजनोपरान्त जब तक अन्न का क्लम न हो जाय तब तक राजा के समान सीना, शिर एवं कमर सीधा करके बैठना चाहिए। इसके पश्चात् 100 कदम चलकर बाये करवट  लेट जाना चाहिए।
कैसा भोजन लेना चाहिए ?
हमारा भोजन सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक हो, इसके लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :
• भोजन रूप, रंग और फ्लेवर में अच्छा हो। जिस भोजन के देखने से घृणा या अरुचि होती हो ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए। अग्नि को प्रोत्साहित करने के लिए भोजन स्वादिष्ट होना चाहिए। 
• जो भोजन पकाकर खाया जाता है वह ठीक से पका हुआ होना चाहिए, कच्चा या अधिक पका हुआ नहीं होना चाहिए।
• खाने के समय भोजन का ताप शरीर के ताप से थोड़ा अधिक होना चाहिए, भोजन न तो ठंडा होना चाहिए और न ही अत्यधिक गर्म।
• पकाये गए भोजन को सामान्यतः पकाने के तीन घंटे के अन्दर खा लेना चाहिए।
• बासी भोजन नहीं खाना चाहिए।
• भोजन में थोड़ी घी की मात्रा शामिल किये जाने पर जठराग्नि तेज होती है।
• भोजन अधिक मसालेदार या अधिक घी-तेल वाला नहीं होना चाहिए। अधिक मसालेदार या अधिक घी-तेल वाला भोजन जलन पैदा करता है और गैस बढ़ाता है।
• मौसम में पैदा होने वाले फल और सब्जियों को भोजन में शामिल करना चाहिए।
• रसेदार शाक और दाल भोजन में शामिल किये जाने चाहिए। 
• खाने के पहले या साथ में अदरक, नीबू का जूस लेने से जठराग्नि प्रबल होती है।
• शाम के खाने के लगभग एक घंटे बाद एक गिलास गरम दूध लेना उपयोगी होता है।
• भोजन के साथ अत्यधिक ठन्डे पदार्थ आइसक्रीम, कोल्ड कॉफी, कोल्ड ड्रिंक्स आदि नहीं लेना चाहिए। भोजन के साथ गर्म चाय या कॉफी ली जा सकती है। भोजन के साथ अदरक या सौंफ की चाय भी ली जा सकती है। इससे पाचन शक्ति बढ़ती है।
• यदि संभव हो तो सप्ताह में एक दिन फल, सूप आदि का हल्का भोजन करना चाहिए। 
• भोजन तभी करना चाहिए जब खाने का समय हो और भूख लगी हो। अन्यथा भोजन के पचने में कठिनाई होती है।
• जो पदार्थ भोजन में साथ-साथ लेना वर्जित है, उन्हें साथ-साथ नहीं लेना चाहिए। 
• भोजन सदैव बैठ कर खाना चाहिए। खड़े होकर, चलते-फिरते या कुछ कार्य करते हुए भोजन नहीं खाना चाहिए। 
• खाने में खट्टे, नमकीन, चटपटे, कड़ुए, मीठे स्वाद वाले पदार्थों को शामिल किया जाना चाहिए किन्तु पदार्थ अत्यधिक कड़ुए,खट्टे, तीखे या मीठे नहीं होने चाहिये। ऐसे भोजन दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं।
• भोजन के बाद इलायची के बीज या सौंफ चबाने से पाचन शक्ति बढ़ने के साथ-साथ मुंह भी तरोताजा होता है।