शराफ़त

*शराफ़त* 

आप यहां की सड़कों पर या सार्वजनिक स्थलों पर  शराब नहीं पी सकते हैं।
 कहां आप भी भाई साहब ! 
  शराब तो यहां आप कतई नहीं पी सकते जनाब।।।
यहां शराबबंदी कानून लागू है और यह आपको इस बात की इज़ाजत कतई नहीं देता कि आप शराबबंदी कानून का उल्लंघन करें। आपको करना भी नहीं चाहिए। क्यों सरकारी कामकाज में बाधा डालने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार की नीतियों का क्यों विरोध कर रहे हैं। विरोध करना आपका काम थोड़े ही न है ! बहुतेरे लोग हैं इस काम के लिए। आप सरकार से पंगे लेने की कोशिश न करें। अच्छी बात नहीं है। बात आपकी सेहत की ही तो हो रही है। क्यूं अपने साथ साथ पुरे परिवार की सेहत के दुश्मन बन रहे हैं।अरे भाई, घर में बैठ कर आराम से पीएं। जब चाहें तब पीएं। जितना चाहे उतना पीएं। किसने रोका है। अकेले पीएं, दोस्तों के साथ पीएं। सीनियर बच्चन साहब की मधुशाला का आनंद उठाएं। जमकर पिएं।पी कर आप पुरी तरह टल्ली हो जाएं। किसे फ़र्क पड़ता है। दो चार फ़ोन इधर उधर घुमाया। बस! सामान हाज़िर है। जो चाहिए वो हाज़िर है। कहां बाहर निकल कर खरीदने की कवायद। अब भला कोई क्यों करें। क्यों समय का मुहताज बने रहें। लाइन में खड़े होकर आम आदमी की तरह अपनी बारी का इंतजार करें। क्या वाकई आप कैटल क्लास से हैं। क्यूं भला! अरे! ये तो वो लोग हैं जो ज़िंदगी भर दाल रोटी की मशक्कत में ही लगे रहते हैं। उसके अलावा इन्हें कुछ सूझता भी नहीं है और न ही इन्हें जरूरत है।
आप तो बस शुरू हो जाएं। सिर्फ एक दो फ़ोन ही तो घुमाना है। हां बस थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है। ओह! सावधानी मैंने ग़लत शब्द इस्तेमाल कर लिया शायद। आप कोई ऐरे गेरे लोग थोड़े ही न हैं जो शोर मचा कर कुछ करते हैं। भाई, शरीफ़ हैं हम। शराफ़त हमारी रगों में है। शराफ़त का तकाजा है जनाब, घर की चारदीवारी से बातें बाहर नहीं जानी चाहिए। बातें बाहर जाएंगी तभी तो बेवजह बातें होंगी। कानून का उल्लंघन होगा। कितनी अच्छी व्यवस्था है। क्यों किसी पर दोष मढ़ना।क्यों नाहक परेशान होते हैं। अरे भाई, खुले में और फुटपाथ पर वो सोते हैं जिनके घर नहीं होते। उन्हें और उनके परिजनों को हादसे की चिंता सताए जाती है। आप तो ठहरे घर वाले। ऊंची ऊंची चारदीवारी से घिरे घर वाले। आपको किस बात की चिंता। जब चाहें, जब तलक चाहें, जितना चाहें खुलकर लें। अकेले लें, दोस्तों के साथ लें और मस्त रहें। जीवन का आनंद उठाएं। ये बंदी वंदी आपके लिए नहीं है। भाई ये तो उनके लिए है जो खुले में जीने मरने को अभिशप्त हैं। " *जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां"* । 
ये तो बेचारे बाहर भी तो नहीं जा सकते। जाते भी हैं तो मजुरी करने। दिन भर की मेहनत मजुरी के बाद वैसे भी पुरी बोतल का नशा आंखों में छाया रहता है। कब नींद आई, कब रात चढ़ी और कब पौ फटा। कहां पता चलता है। 
वैसे आप चाहें तो बाहर निकल सकते हैं। किसने रोका है। बहुत सारे बहाने हैं।
बस अंतिम में एक बात! थोड़ा ख़्याल रखेंगे तो ठीक रहेगा! वरना क्या करें ये मुआ नौकरी भी तो बजानी है। परस्पर सहभागिता भी कोई चीज़ होती है🤪
डिस्क्लेमर: बात निकली है तो दूर तलक जाएगी! 
मनीश वर्मा'मनु'