HOME
UPLOAD
WALLET
BLOG
ARRIVALS
CATEGORIES >
Indian Literature
Hindi
पत्रिका
कहानियां
उपन्यास
कविता
ग़ज़ल/शायरी
बाल साहित्य
यात्रा वृतांत
लेख
आलोचना
नाटक
संस्मरण
अनूदित साहित्य
व्यंग्य
जीवनी
सिनेमा
भाषा विज्ञान
मीडिया
साक्षात्कार
शब्दकोश
इतिहास
विज्ञान
Urdu
Punjabi
Kannada
Marathi
Awadhi
Bhojpuri
Maithili
English
Class
Notes(BA,MA)
Study Materials
IIT-JEE
CPT
Board Exams
IES/Gate
Biotechnology
Research Papers
Others
Engineering
Computer Science
Electronics
Communication
Interview Questions
English
Punjabi
Kannada
Urdu
Marathi
Awadhi
Bhojpuri
Maithili
Management
Analytics/GMAT Entrance
Entrepreneurship
Marketing/Finance
BIRD
HOME
UPLOAD
WALLET
BLOG
ARRIVALS
Bookrack
(0)
LogIn |
SignUp
Categories
Indian Literature
Hindi
पत्रिका
कहानियां
उपन्यास
कविता
ग़ज़ल/शायरी
बाल साहित्य
यात्रा वृतांत
लेख
आलोचना
नाटक
संस्मरण
अनुदित साहित्य
व्यंग्य
जीवनी
सिनेमा
भाषा विज्ञान
मीडिया
साक्षात्कार
शब्दकोश
इतिहास
विज्ञान
Urdu
Punjabi
Kannada
Marathi
Awadhi
Bhojpuri
Maithili
English
Notes(BA,MA)
Study Materials
IIT-JEE
CPT
Board Exams
IES/Gate
Biotechnology
Research Papers
Others
Engineering
Computer Science
Electronics
Communication
Interview Questions
English
Punjabi
Kannada
Urdu
Marathi
Awadhi
Bhojpuri
Maithili
Management
Analytics/GMAT Entrance
Entrepreneurship
Marketing/Finance
Bankers Institute Of Rural Development
भौतिकवाद, प्रकृतवाद और हमारी महत्वाकांक्षएँ
Shyam Nandan Pandey
Monday, February 27, 2023
*भौतिकवाद, प्रकृतिवाद और हमारी महत्वाकांक्षाएं*
सुदूर गाँव और जंगलों मे बैठा कोई बुजुर्ग व्यक्ति और उसका परिवार जो खेती बाड़ी करता है, गाय, भैंस और बकरियों चराता है,हाथ मे स्मार्ट फोन नहीं, परिश्रम कर के, दाल रोटी खा कर सो जाता है और अगली सुबह फिर वही दाल या दही रोटी खाकर रोज के काम मे लग जाता है,
पैरों में चप्पल भी नहीं होते, छोटे मोटे कांटे टूट जाते हैं पैरों मे चुभने ही, परिश्रम कर के शरीर मजबूत बनता है और अभ्यास से दिमाग
उसने कोई महानगर और मैट्रो सिटी नहीं देखी
वो देखता है बछड़े और पिल्ले को जन्मते हुए, पशु- पंक्षियों को बतियाते हुए,
देखता है पशुओं को पगुराते हुए और चिड़ियों को दाना चुगते और घोषला बनाते और डूब जाता है खामोशी में कभी मन्द मुश्कुरते हुए कभी कुछ चिंता और बेचैनी की सिकन लिए चेहरे और माथे पर।
उसका एक धर्म है प्रकृति के साथ रहना प्रकृति के साथ जीना ,खुद का और परिवार का भरण पोषण
वो इतना जानता है कि धरती पर उसी की एक जात ऐसी है जो बोलता है, समझता है प्रतिक्रिया देता है दूसरे जीवों और प्रकृति का संरक्षण कर सकता है,
जो जैसा हो रहा है वैसा होने देता है, प्रकृति में प्रकृति के साथ रहता और जीता है, वो चाहता है धरती सदा धरती बनी रहे उसका विज्ञान अलग है।
उसे क्या पता आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(AI-गूगल असिस्टेंट, एलेक्सा आदि),स्पेस साइंस एंड टेक, रोबोटिक्स, टेशला, चंद्रयान, मंगलयान, आधुनिक तकनीक, विज्ञान,ग्रेविटी, रोज आने वाले नए सॉफ्टवेयर और एप्प,अंतरिक्ष मलबा(अंतरिक्ष मे मौजूद 8000टन से अधिक कचरे) और रूस यूक्रेन युद्ध और इन सब के प्रभाव।
उसे कोई फर्क नही पड़ता कि हजारों, करोङो और अरबों वर्ष बाद उसके वंशज धरती पर रहेंगे या चांद व अन्य किसी ग्रह पर जाकर बसेरा करेंगे।
उसके बच्चे पढ़े आस पास के प्राइमरी और इंग्लिश मीडियम स्कूलों में, और पोते तो और बड़े और मंहगे स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
कच्चे और घास फूस के घर ईंट और कंक्रीट के घरों में बदल रहे हैं उसी के सामने।
उसके पुर्वजों ने जिया बहुत ही साधारण जीवन तकनीक और विज्ञान के बहुत पहले और इसके बिना और अब वो भी जीता है वैसे ही सामान्य जिंदगी।
नदियां, झरने पहाड़, जंगल सब के साथ यथा स्थिति रहता है संयमित उपभोग भी करता है।
शायद वो देखा ही नही ख्वाब बंगलों और गाड़ियों का शॉपिंग मॉल्स में खरीदारी का मैक डी, पिज्जा हट और सी सी डी के स्वाद को चखने का।
खेती और चारागाह के लिये जमीन भी कम हो रहे हैं,
सामान के बदले सामान की प्रथाएं लगभग खत्म हो गई मंहगाई उसके घरों और रोज के जरूरत की चीजों में भी घुस गई।
नमक, माचिस और पानी के सस्ते पन पर नाज था अब वो भी ब्रांडेड हो गए।
दादा दादी और नाना नानी की कहानियां, संस्कार,सत्संग और सज्जनता से अब पेट भी नही भरा जाएगा ।
"हमे फ्यूचरिस्टिक और पैसिसनेट होना पड़ेगा।"
कुछ लोगों की महत्वाकांक्षाओं, जिज्ञासा और रुचि ने हमे हमारी ब्रह्मांड,धरती, जीवों औऱ खुद के अस्तित्व को जानने और समझने में मदद की और जीवन को आसान बनाया
बहुत सारे पूरातत्ववादी, प्रकृतिवादी और वैज्ञानिक ने पूरा जीवन लगा दिया इसे समझने में।
वर्ष 1700 के अंत तक अधिकांस लोगों का यही मानना था कि पृथ्वी 6000 वर्ष पुरानी है।
चार सौ वर्ष पहले जर्मन जियोरजियस एग्रिकोला दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खनन के काम को वैज्ञानिक नजर से देखा । उन्होंने अपनी सारी जिन्दगी खदानों में बिताई और जमीन के नीचे से निकले खनिजों का अध्ययन किया
फ्रेंचप्रकृतिवादी और जीव वैज्ञानी जौरसिस कूवये ने जीवो और पौधों का वर्गीकरण किया।
स्विटजरलैंड में एक वैज्ञानिक थे जिनका नाम था गैसनर उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं जिसमें उन्होंने प्रकृति में पाई जाने वाली सभी चीजों का वर्णन किया गैसनर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने फॉसिल ( जीवाश्म ) के चित्र बनाए ।
गैसनर ने विभिन्न पौधों और जानवरों को अलग - अलग समूहों में रखा । कुछ जानवर अन्य जानवरों से मेल खाते हैं और कुछ पौधे अन्य पौधों से मिलते - जुलते हैं । शेर , चीते और बिल्लियां एक - दूसरे से बहुत मिलते - जुलते हैं वहीं लोमड़ी , भेड़िए और कुत्ते भी एक - दूसरे से बहुत मिलते - जुलते हैं । गाय - भैंस , भेड़ और बकरियों के खुर होते हैं और वे सभी घास खाते हैं और एक - दूसरे से बहुत मिलते - जुलते हैं ।
उदाहरण के लिए सींग और खुर ज्यादातर पौधे खाने वाले (शाकाहारी) जानवरों में पाए जाते हैं । किसी मांसाहारी जानवर के सींग और खुर नहीं होते । मांसाहारी जानवरों के विशेष प्रकार के दांत होते हैं जो शाकाहारी जानवरों में नहीं होते । कूवर्य की खोज के अनुसार हम किसी जानवर के शरीर के छोटे से भाग से मात्र एक दांत से भी उस जीव के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं ।
पृथ्वी पर उपस्थित और विलुप्त सभी जीवों को उनके गुणधर्मों के आधार पर प्रजाति (स्पेसीज़) औऱ वंश (जीनस) में बांटे जिनसे उनके अध्ययन में आसानी हुई।
स्वीडिश प्रकृतिवादी कैरोलस लीनियस ने प्रत्येक पौधे और जानवरों को दो लैटिन शब्दों का नाम दिया जिसमे पहला शब्द उसके वंश(जीनस) और दूसरा उसके प्रजाति (स्पेसीज़) को दर्शाता है
स्तनपायी (मैमल्स) सरीसृपों ( रेप्टाइल), पंक्षी और मछलियां स्पेसीज़ का पता लगाया जा सका और इनका अध्ययन आसान हुआ।
लाइलाज बीमारियों के इलाज मिले बीमारियां का डाइग्नोसिस और उपलब्ध मेडिसिन और उपकरणों से उम्र बढ़ी, हाई स्पीड वाहनों से दूरियां कम हो गईं, टेलीफोन और स्मार्ट फोन से कम्युनिकेशन बढ़ा
पर "अति हर चीज की बुरी है" असल में हम आदी हो गए दवाईयों के, हर कम जल्द खत्म करने के और मोबाइल फोन्स के चार लोग इकट्ठा बैठे तो होते हैं, पर एक दूसरे से बात करने, कुशल क्षेम पूछने और हंसी मजाक करने के बजाय व्यस्त होते हैं अपने अपने फोन में दुःख की बात तब और होती है जब हम चार लोगों में एक के पास फोन ही न हो या उसके पास जो फोन है वो स्मार्ट न हो वो बिल्कुल अकेला हो जाता है।
जैसे ही मेडिकल साइंस और हेल्थ केयर विकसित हुए उसी अनुपात में नई बीमारियां भी बढ़ी, दूरियां समय कम करने होड़ में हाई स्पीड और यातायात नियमों के न पालन की वजह सेसड़क दुर्घटनाएं भी बढ़ी।
अब हम बहुत आगे निकल आये मशीनों और उपकरणों से घिरे हैं। हमारी इच्छाएं अति में बदलने लगी हैं, खेतों में आवश्यकता से अधिक खाद और कीटनाशक डालने लगे, परिवार में हर सदस्य को चलने के लिए खुद की गाड़ी चाहिए, हाथ पैर न चलाना पड़े इसलिए हर काम को करने की मशीन, खाद केमिकल्स और दवाईयां उपचार के लिए नहीं बल्कि व्यापार के लिए बनाई जा रही हैं।
हम रोज थोड़ा थोड़ा जहर खा रहे हैं खेतों में केमिकल्स और रासायनिक खादों की बोतलें और पैकेट्स के ढेर लगे होते हैं।
कंपनियां दुकानों बाजारों के साथ साथ गांवों तक जाकर मार्केटिंग और सेल करती हैं अपने प्रोडक्ट को
फिर इन जहर से उत्पादित उत्पाद भी हमारे ही हिस्से आता है जबकि समृद्धि और कंपनियों के मालिक IPM, ऑर्गेनिक और नेचुरल उत्पाद ही खाते हैं।
हमारी अति महत्वाकांक्षाओं की वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है जिसकी वजह से पर्यावरण व जमीन पर पड़ रहे दुष्परिणाम के नतीजे का भुक्तभोगी ये सीधे साधे लोग भी होंगे जो जाने अनजाने में कभी भी प्रकति के नियमो के विरुद्ध नहीं गये और प्रकृति के साथ जीवन यापन कर रहे हैं।
घरो और दफ्तरों में ए सी और कारों से पेट्रोल, डीजल और गैस के दोहन के साथ साथ पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं, पृथ्वी पर प्लास्टिक और अन्य अनावश्यक कचरे का नया हिमालय खड़ा कर रहे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन सीमित संसाधनों में कमी के साथ साथ पर्यावरण को भी छति पहुंचा रहा है।
पृथ्वी पर मौजूद कुल संसाधनों का 40-45 प्रतिशत हिस्से का उपभोग सिर्फ 2-3 प्रतिशत लोग कर रहे हैं।
प्राकृतिक संसंधनो पर सम्पूर्ण मानव जाति और अन्य जीवों का समान अधिकार है।
"प्रत्येक मानव निर्मित उत्पाद प्राकृतिक संसाधनों से ही बना होता है"
इन जैविक अजैविक संसाधनों को बनने में लाखों वर्ष लगे,
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस शदी अर्थात अगले 50 से 120 वर्षों में तेल कोयला और प्राकृतिक गैस समाप्त हो जाएंगे ।
डेवलपमेंट और आधुनिकीकरण के नाम पर पिछड़े और कमजोर लोगों का हक और संसाधन छीना जा रहा है ये सब सिर्फ उन्हीं 5 से 10 प्रतिशत लोगों के लिए है।
हमारी छुधा और तृष्णा है कि भरती ही नहीं है।
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम से कम करना चाहिए इन्हें बनने में बहुत उथल पुथल और लाखों वर्ष लगते हैं।
हमें अपने कमाई का कुछ हिस्सा उनके लिए जरूर रखना चाहिए जो पिछड़े है जाने अनजाने में जिनका हक हमने कन्ज्यूम किया और जिन्हें हमारे सहारे की जरूरत है।
-श्याम नन्दन पाण्डेय
मनकापुर, गोण्डा, उत्तर प्रदेश
Popular Tags
Banking
Technology
Politics
Literature
Cinema
Story
Cricket