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Title:
Bhaktikavya
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Description:
विडम्बना यह है कि हमारा भक्ति काव्य जितना लोकतान्त्रिक है, कुछ अपवादों को छोड़कर उसकी आलोचना उतनी ही अलोकतांत्रिक. समूचे भक्तिकाव्य का मूल्यांकन केवल दार्शनिक मतवादों और पौराणिक प्रतिमानों के आधार पर नहीं बल्कि लोकवादी समाजशास्त्रीय प्रतिमानों के आधार पर किया जा सकता है.