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Title:
Tumhe Sone Nahin Degi
Description:
इस डरावने उदास रूह को बेचैन करने वाले वक्त में हर रोज के दर्दनाक दृश्यों से मन में जो चीख पैदा होती है, मैं अपनी कविता में उसे ही व्यक्त करने की कोशिश करती रही हूं । क्या सांस्कृतिक हादसों और आहत भावनाओं के इस दौर में कविता इस डर को तोड़कर विचारों को बचाने और साथ ही व्यापक लोकतांत्रिक लड़ाई में एक वैचारिक सेनानी नहीं बन सकती है?