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Title:
Stri Vimarsh Ki Uttar Gatha
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संतुलन को ही सुख का मंत्र माननेवाली अनामिका की विचारक दृष्टि पश्चिमी दार्शनिक निकाय से होती हुई भारतीय आर्ष ग्रंथों तक ही नहीं, लोकसाहित्य तक भी पहुंचती है। इस विमर्श में स्त्रीवादी चिंतन की मुख्य धाराओं, स्त्रीवादी आलोचना, स्त्री-केंद्रित आंदोलन और भारतीय साहित्य के अंतस तक पैठने की सफल चेष्टा नजर आती है।