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Title:
Kabir Kavy Mein Lok Tatv
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‘भक्ति आंदोलन और कबीर’ नामक प्रथम अध्याय में लेखक ने कबीर के समस्त कवि-कर्म और भक्ति आंदोलन की प्रवाहमान विशाल धारा में उनके योगक्षेम का विवेचन किया है। द्वितीय अध्याय में भारतीय मध्यकाल के लोक पर विचार और विन्यास की व्याख्या के उपरांत कबीर साहित्य में उसके परावर्तन पर प्रकाश डाला गया है। मध्यकाल की निर्माणाधीन भाषिक-संरचना और उसके प्रधाान शिल्पी कबीर की कलात्मकता का सूक्ष्म अवलोकन है।