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Title:
Bheetar Utarne Ke Utsav
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काव्य की सर्जना में जब यह भाव हो- “तुम्हारे भीतर उतरने का उत्सव” तो काव्य के वैराग्य-मरू में भी रागिनियाँ उगने लगती हैं। और भी, कि यहाँ तो परोसने की प्रभुता में उर्वर बन बहने की बात है! प्रकृति और स्त्री दोनों की स्वमुक्ति ही संधान का पोषक है।