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Title:
Sahitya Aur Sahityetar
Description:
साहित्य को कभी साहित्येतर से अलग नहीं किया जा सकता । निरर्थक ध्वनियां भी मानव कंठ से ही निकलती हैं और उन्हें सुनने वाला उनमें लय को पहचान कर ही उन्हें सुनता है । साहित्य के प्रसंग में पुरखों को याद करना जरूरी होता है क्योंकि वे हमारे लिए बहुत आसानी पैदा कर जाते हैं । उनको याद करने का मतलब उनके समय को याद करना होता है ।